
इंदौर। मुलतापी समाचार गोबर से बने कंडों से यदि दाह संस्कार किया जाए तो पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ पेड़ों को भी बचाया जा सकता है। इसी संदेश के साथ शहर के मुक्तिधामों में कंडों से दाह संस्कार का चलन बढ़ रहा है। अब लोग खुद आकर लकड़ी के बजाय कंडों से दाह संस्कार के बारे में पूछने लगे हैं। उधर शहर की कई गौशालाओं ने भी अंतिम संस्कार के लिए कंडे उपलब्ध करवाने की पहल की है।
बीते कुछ वर्षों में पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरुकता तेजी से बढ़ी है। पहले अंतिम संस्कार के लिए केवल एक ही लकड़ी का विकल्प होता था। विद्युत और डीजल शवदाह गृह भी शहर के कुछ मुक्तिधामों पर आरंभ किए गए थे लेकिन इनका प्रयोग इक्कादुक्का परिवार ही करते हैं। लकड़ी का प्रयोग कम करने और उनके स्थान पर कंडों का प्रयोग आरंभ करने के लिए पहल की। इसका परिणाम यह हुआ कि इंदौर और आसपास के क्षेत्रों में करीब दो हजार शवों का अंतिम संस्कार कंडों से हो चुका है।
एक दाह संस्कार में चार पेड़ों की लकड़ियां लगती हैं
लकड़ी से अंतिम संस्कार के लिए करीब 400 किलो लकड़ी की आवश्यकता होती है। इसके लिए चार पेड़ काटे जाते हैं। उधर गौशालाओं के पास भी कमाई का कोई अन्य स्रोत नहीं होता। गौशालाओं को इस बात के लिए जागरूक किया जा रहा है कि वे गोबर फेंकने के बजाय कंडे बनाकर बेचें ताकि उनका दाह संस्कार के लिए पर्याप्तसंख्या में कंडे मिल सके।
इससे गौशालाओं को भी कमाई होगी और कंडो की कमी भी नहीं आएगी। सामाजिक और गैर सरकारी संगठनों के अलावा विभिन्न समाज भी इस पहल में शामिल होकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं।
श्रीश्री विद्याधाम गौसेवा समिति के व्यवस्थापक कैलाश तिवारी के अनुसार कंडों की आपूर्ति अंतिम संस्कार के लिए भी करते हैं। इसके अलावा शहर में कई गौसेवा संस्थाएं हैं जिनके पास लाखों की संख्या में कंडे उपलब्ध हैं। लोगों को जागरूक होने की जरुरत है।
मनमोहन पंवार
मुलतापी समाचार (संपादक)
ई दैनिक न्युज एवं मासिक 9753903839