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अयोध्या. गणतंत्र दिवस के मौके पर पद्मश्री सम्मान से नवाजे जाने वाले मोहम्मद शरीफ को प्रभारी मंत्री नीलकंठ तिवारी ने सम्मानित किया. रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने भी उनके इस कार्य के लिए बधाई के पात्र मानते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया.
राम नगरी अयोध्या के मोहम्मद शरीफ को पद्मश्री सम्मान से नवाजा जाएगा. पुरस्कार पाने वालों की लिस्ट में उनका नाम भी शामिल है. शरीफ इस सम्मान से बेहद अभिभूत हैं और कहते हैं, ‘मोदी सरकार ने मेरी सेवाओं की कद्र कर मुझे यह सम्मान दिया है. इस सरकार ने बिना किसी भेदभाव के निर्णय किया है.’ लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार करके चर्चा में रहने वाले मोहम्मद शरीफ ने कहा कि मैं चाहता हूं कि यह सरकार सत्ता में बनी रहे और जैसी जनहित की योजनाएं चला रही है, उसमें और बढ़ोतरी करें.
वह कहते हैं ना कर्म किए जा फल की चिंता ना कर, सब्र का फल मीठा होता है। ये सब कहावत सटीक बैठती हैं अयोध्या में खिड़की अली बेग के रहने वाले मोहम्मद शरीफ पर। चाचा शरीफ के नाम से मोहम्मद शरीफ ने पिछले 25 सालों में फैजाबाद और उसके आस-पास 25,000 से ज्यादा लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया है। इन्होंने कभी भी धर्म के आधार पर अंतर नहीं किया, बल्कि व्यक्ति के धार्मिक मान्यताओं के आधार पर अंतिम संस्कार करते आए हैं।
मोहम्मद शरीफ को ‘शरीफ चाचा’ के नाम से जाना जाता है. बेटे की हत्या और फिर शव के न मिलने के बाद से वह लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करना शुरू कर दिया था.
आपको बताते चलें कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2020 के लिए पद्म पुरस्कारों का ऐलान कर दिया है। इस साल 7 हस्तियों को पद्म विभूषण, 16 शख्सियतों को पद्म भूषण और 118 लोगों को पद्म श्री देने का ऐलान किया गया है। इस साल भारत रत्न का ऐलान नहीं किया गया है। पद्म पुरस्कारों की लिस्ट में कुछ ऐसे भी नाम हैं जो बिना चर्चा में रहे अपना काम बखूबी कर किए हैं। उनमें से एक हैं लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करके चर्चा में रहने वाले मोहम्मद शरीफ का है।
मोहम्मद शरीफ को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है। शरीफ इस सम्मान से बेहद अभिभूत हैं और कहते हैं, ‘मोदी सरकार ने मेरी सेवाओं की कद्र कर मुझे यह सम्मान दिया है। इस सरकार ने बिना किसी भेदभाव के निर्णय किया है। मैं चाहता हूं कि यह सरकार सत्ता में बनी रहे और जैसी जनहित की योजनाए चला रही है, उसमें और बढ़ोतरी करें।’
लावारिस शवों की अंत्येष्टि के पीछे की कहानी कुछ यूं है। शरीफ का एक बेटा मेडिकल सर्विस से जुड़ा था। एक बार वह सुल्तानपुर गया था, जहां उसकी हत्या करके शव को कहीं फेंक दिया गया था। परिजन ने उसे बहुत खोजा, पर लाश नहीं मिली। उसी के बाद शरीफ ने लावारिस शवों को ढूंढ-ढूंढकर उसका अंतिम संस्कार करने का प्रण लिया था।
आम लोगों के बीच वह ‘शरीफ चाचा’ के नाम से मशहूर हैं। वह कहते हैं, ‘जब तक उनमें जान है, वह लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करते रहेंगे। इस सेवा से उन्हें सुकून मिलता है। मैं 25 सालों से इस सेवा में जुटा हूं। मीडिया ने बेहद लगाव रखा और इस सेवाभाव का प्रचार भी किया, लेकिन ऐसे काम को सबसे बड़ा सम्मान दिया मोदी सरकार ने। इसके पहले की सरकारों ने मेरे काम को कोई तवज्जो नहीं दी।’