मौत के बाद भी पर्यावरण प्रदूषित ना हो इसकी चिंता की, परिजनों ने किया इच्छा का पालन
बैतूल। डॉ. आरजी पांडेय
बैतूल। मुलतापी समाचार न्यूज नेटवर्क
सेवानिवृत्त प्राध्यापक और प्रख्यात इतिहासकार डॉ. आरजी पांडेय अपनी मृत्यु से 4 माह पूर्व ही एक अनूठी वसीयत लिख गए थे। यह वसीयत मृत्यु के बाद उनके अंतिम संस्कार को लेकर है जिसमें हवन सामग्री का ही इस्तेमाल करने को कहा गया है। उन्होंने उनके अंतिम संस्कार में भी पर्यावरण प्रदूषित न हो, इसका ध्यान रखा। सोमवार को उनकी मृत्यु के बाद परिजनों ने उनकी इच्छा के अनुसार ही अंतिम संस्कार किया।
डॉ. पांडेय का सोमवार सुबह 87 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। निधन से 4 महीने पूर्व उन्होंने एक वसीयत लिखी थी। इस वसीयत को उनके बेटे सीमांत पांडेय ने गंज स्थित मोक्षधाम में पढ़कर सुनाया तो वहां उपस्थित लोग स्तब्ध रह गए। डेढ़ पन्नाों की उनकी वसीयत पूरे समाज के लिए एक मिसाल है। उनके द्वारा 7 अक्टूबर 2019 को लिखी गई वसीयत में लिखा है कि वे जीवन भर आर्य समाज और बौद्ध धर्म को मानते रहे। इसलिए कर्मकाण्ड, श्राद्ध, पिंडदान से सहमत नहीं हैं। इसलिए उनके मरणोपरांत उनका दाह संस्कार हवन के समान किया जाए। उन्होंने इस वसीयत में निर्देश दिए कि उनके दाह संस्कार में 90 फीसदी व्यय हवन सामग्री, नारियल गोला, शुद्ध घी में किया जाए। इससे शरीर से जो वातावरण प्रदूषित हुआ है उसका भी निराकरण हो जाए। मरणोपरांत परिवारजन कोई पूजा पाठ, श्राद्ध कर्म, गरुड़ पुराण, गया जी (पिंडदान) ना करें और उनकी अस्थियां नासिक में त्रयम्बकेशवर देवालय के पास गोदावरी नदी में विसर्जित की जाएं। उनकी इच्छा के अनुरूप ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। गौरतलब है कि डॉ. पांडेय का पूरा जीवन इतिहास और साहित्य के विषयों पर शोध करते हुए बीता। वे बैतूल के जेएच कॉलेज में बतौर प्राध्यापक रहे, लेकिन सेवानिवृत्ति के पश्चात भी भारतीय इतिहास और खास तौर पर मराठा इतिहास पर शोध करते रहे। मराठा इतिहास पर उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी। बैतूल के नेहरू उद्यान स्थित पुरातत्व संग्रहालय को स्थापित करने और वहां दुर्लभ पुरातात्विक वस्तुओं को संग्रहित करने में डॉ. पांडेय ने अतुलनीय योगदान दिया।