Multapi samachar
भंडारे ,लंगर लगाना उतने साहस का काम नहीं, जितना बूढ़े माता-पिता को भोजन कराना
धार्मिक स्थानों पर सफाई करना उतने साहस का काम नहीं, जितना घर की साफ सफाई करना और बर्तन मांजना
उपदेश देना उतने साहस का काम नहीं जितना उसे आचरण में उतारना
भोपाल। परिस्थितियों के साथ साहस की परिभाषा भी बदलती रहती है। भीड़ में सबके साथ जूठी पत्तल उठाना और जूठे बर्तन साफ करने से ज्यादा साहस का काम घर में माता-पिता के बर्तन साफ करना होता है। पटृपूर्ति, हरिद्वार या धार्मिक- सार्वजनिक स्थानों पर सेवाएं देना साहस का काम नहीं, सास द्वारा बहू की घर में थाली धो देना उससे भी बड़ा साहस का काम है
गुरुद्वारे और धार्मिक स्थानों पर जूते -चप्पल साफ करना उतना साहस का काम नहीं है जितना कि अपने घर के सदस्यों के जूते चप्पल साफ कर देना।
बाहर झाड़ू लगाते हुए फोटो खिंचवा कर डीपी पर डालना उतना साहस का काम नहीं है जितना घर में झाड़ू लगाना।
धार्मिक और सार्वजनिक स्थानों पर सफाई करना उतना साहस का काम नहीं है जितना घर में छोटे बच्चे द्वारा की गई गंदगी को साफ करना।
मृत्यु भोज को बंद करने पर भाषण देना उतने साहस का काम नहीं है जितना मृत्युभोज में भोजन न करना।
अस्वस्थ्य पत्नी को अस्पताल में भर्ती कर देना और हाटेल का भोजन करा देना उतने साहस का काम नहीं जितना कि स्वयं उसकी सेवा करना और स्वयं भोजन पका कर खिलाना । पति पत्नी दोनों सेवारत होने पर घर के काम भी पत्नी द्वारा ही कराना उतने साहस का काम नहीं जितना कि पति द्वारा उसे काम में सहयोग करना।
दहेज प्रथा पर निबंध लिखना या भाषण देना उतने साहस का काम नहीं है जितना कि दहेज न लेना।
पिछले दिनों एक अमीर व्यक्ति द्वारा गुरुद्वारे में जूते चप्पल साफ करते हुए वीडियो वायरल हुआ था जिसमें महंगी गाड़ी में उसे आते हुए दिखाया जाता है। गुरुद्वारे में उसे अपने बॉडीगार्ड के जूते चप्पल साफ करते हुए वीडियो वायरल हुआ है। गुरुद्वारे में जूते चप्पल साफ करना इतना साहस का काम नहीं है जितना कि उसका अपनी फैक्ट्री के मजदूरों के जूते चप्पल साफ करना। यदि वह अमीर जिस दिन अपनी फैक्ट्री के मजदूरों के जूते चप्पल साफ करने लगेगा उस दिन धार्मिक स्थल और गुरुद्वारे में जूते- चप्पल साफ करना उसके लिए अर्थहीन हो जाएगा।
इस तरह का साहस दिखाने पर जो अहंकार गलता है और जो विनम्रता ह्रदय में घर करती है उससे मिलने वाली खुशी, संतोष और आनंद किसी मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे और चर्च में मिलने वाली खुशी, संतोष और आनंद से भी बड़ा होता है।