
मुलतापी समाचार मनोज कुमार अग्रवाल
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण का लाभ उन महानुभावों के वारिसों को नहीं मिलना चाहिए जो 70 वर्षों से आरक्षण का लाभ उठाकर धनाढ्य की श्रेणी में आ चुके है! सही मायने में आरक्षण का लाभ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के जरूरतमंद लोगों तक नहीं पहुंच पाने पर कोर्ट ने कहा, सरकार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों की सूची फिर से बनानी चाहिए! जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत शरण, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की जस्टिस पांच सदस्य संविधान पीठ ने कहा, ऐसा नहीं है, आरक्षण पाने वाले वर्ग की जो सूची बनी है वह पवित्र है और उसे छेड़ा नहीं जा सकता! आरक्षण का सिद्धांत ही जरूरतमंदों को लाभ पहुंचाने का है!
संविधान पीठ ने अपने आदेश में कहा अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के भीतर ही आपस में संघर्ष है कि पात्रता के लिए योग्यता क्या होनी चाहिए! पीठ ने कहा सरकार का दायित्व है कि सूची में बदलाव करे जैसा कि इंदिरा साहनी मामले में नौ सदस्यीय पीठ ने कहा था!
नहीं मिल पा रहा आरक्षण का लाभ संविधान पीठ से कहा, आरक्षित वर्ग के भीतर ही सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत लोग हैं! ऐसे में जरूरतमंद लोगों को सामाजिक मुख्यधारा में लाने की जरूरत है, बावजूद इसके उन्हें आरक्षण का सही मायने में लाभ नहीं मिल पा रहा! पीठ ने कहा वह वरिष्ठ वकील राजीव धवन की इस दलील से सहमत हैं कि आरक्षित वर्गों की सूची पर पुनर्विचार करने की जरूरत है!
पीठ ने कहा आरक्षण प्रतिशत के साथ बिना छेड़छाड़ किए सूची में बदलाव किया जा सकता है, जिससे सही मायने में जरूरतमंदों को लाभ मिल सके, न कि उन लोगों को जो सूची में शामिल होने के बाद से आरक्षण का लाभ उठा समाज की मुख्यधारा में आ चुके हैं!
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