विश्व परिवार दिवस पहाड़ों पर बैठकर तप करना आसान है! लेकिन परिवार में सबके बीच में रहकर धीरज रखना कठिन है ! और यही सबसे बड़ा तप है! परिवार का हर छोटा या बड़ा सदस्य हथेली में रखा हुआ एक नाजुक फूल है! उसकी हिफाज़त ही हमारा उसूल है! परिवार में हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है! कि हम आने वाली पीढ़ी के लिए एक अच्छे आदर्श पूर्वज कहलाए! जैसे बूढ़े बरगद की छाया और बड़े बुजुर्गों की छत्रछाया!! परिवार की शान जीवन में सुख समृद्धि वैभव आलीशान
होली स्पेशल इतने ना आओ हमारे पास पहले लगाओ मुंह पर माक्स बुरा न मानो होली है कोरोना से बचना और बचाना है जरूरी हाथ धोना, मार्क्स पहनना, दो गज की दूरी है मजबूरी तभी तो हम सभी रह सकेंगे संग संग होली की खुशियां ना होंगी बेरंग हर वर्ष मनाएंगे होली सातों रंगों के संग खुशियों से भर दो अपनों की झोली घर पर ही मनाओ अबकी बार होली 2 गज की दूरी मास्क है जरूरी
होली की हार्दिक हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
बैतूल की होली 2021 गंज टिकारी सदर आज ना होगी कोई गदर क्योंकि कोरोना का है सब को डर ना नशा ना कीचड़, ना कोई गाली हाथ में होगी सिर्फ गुलाल की थाली अच्छे आचार विचार और व्यवहार घर में ही मनाओ होली का त्यौहार होली आने पवित्र त्यौहार हाथ धोना मार्क्स पहनना 2 गज की दूरी आज है हमारी मजबूरी होली की हार्दिक हार्दिक बधाई
सारे दिन की भाग-दौड़ के साथ उत्तर-दक्षिण पूरब-पश्चिम की सारे जहाँ से कुछ खट्टी कुछ मीठी नरम-गरम कच्ची-पक्की बुलवाकर चुनिंदा हाथों से जब मेरा अंग-अंग तैयार किया जाता है और जैसे ही रात्रि के पहले पहर के अंतिम चरणों में समय के प्रहरी आपस में आलिंगन कर एक होते हैं तभी ठीक रात्रि के बारह बजे मेरा जन्म होता है।
वाह रे मेरी किस्मत तो देखो, मेरे बाहर आते ही मेरा मालिक मेरा सम्राट मेरा जन्मदाता गौर से ऊपर से नीचे तक मुझे निहारता है, कि मुझमें कोई कमी तो नहीं, फिर क्या पूछना जैसे ही मै अपने वास्तविक रूप में आता हॅू मेरी सेवा में मेरे ही घरों के सामने एक से एक गाड़ियाँ मेरी प्रतिक्षा में खडी रहती है कोई में लिखा होता है- रोको मत जाने दो और कोई में नान स्टाप कार्ड लगाये मेरा इंतजार करते रहती हैं, जैसे ही मै उस पर सवार होता हूं
गाड़ियाँ बिना रोक-टोक सुनसान सड़कों पर रातों-रात मेरी मंजिल की ओर लेकर मुझे लेकर दौड़ने लगती, कोई मुझे बस में बैठाता, कोई टेन में तो कोई एरोप्लेन में। मेरे पहुँचते ही सुबह-सुबह ब्रह्म मुहुर्त में सूरज की पहली किरणों के साथ लोग मुझे दोनों हाथों में लेकर मेरा स्वागत करते मुझे बहुत आनंद आता है। वैसे मुझे आग-पानी से डर लगता है हवा सहन नहीं होती, फिर भी जब सुबह-सुबह चाहे ठण्डी हो या गर्मी या हो बरसात लोग मुझे साईकल/मोटर साईकल में कोई हाथ पकड़कर मेरे चाहने वाले के घर छोड़कर आते हैं। मुझे अपने आप पर गर्व है कि मैं कितना खुशनसीब हू कि मुझे बिना किसी पास के राष्ट्रपति/ प्रधानमंत्री/ मुख्यमंत्री आई.ए.एस. आई.पी.एस. एवं सभी VIP के घरों में आफिसों में डायरेक्ट एन्ट्री मिलती है। मेरे पहुँचते ही इन लोगों के पास किसी से मिलने के लिये समय हो या न हो इतनी व्यस्तता के बाद भी रोज सुबह मेरे लिये अपना अमूल्य समय निकालकर चाय नाश्ते के साथ मुझे भरपूर समय देते हैं तब मेरा सर गर्व से और भी ऊँचा हो जाता है।
मुझे हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई अमीर-गरीब महल हो या अटारी या हो झुग्गी-झोपड़ी किसी के भी घर में जाने में मुझे कोई शर्म नहीं आती क्योंकि मुझे मालूम है मेरी उम्र सिर्फ एक दिन है। फिर अमीर-गरीब छोटा-बड़ा ऊँच-नीच जात-पात में अन्तर करने में अपना समय क्यों गवाऊँ मेरा उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों से मिलूँ इतनी छोटी सी उम्र में मैं जितने अधिक से अधिक लोगों से मिलूँगा उतनी ही तृप्ती मुझे मिलेगी।
जब मैं ट्रेनों में बसों में सफर करता हूँ तो लोग मेरी दोनों बाहें पकड़े कोई मेरी कमर पकड़े कोई मुझे गोदी में बिठाये अपना मनोरंजन करते हैं समय काटते हें और मैं कभी इसके पास कभी उसके पास मुझे तो बहुत मजा आता है।
कोई-कोई तो मुझे देखने के बाद मेरे हाथों में गरम-गरम जलेबी-समोसे रखकर मुझे जायका दिलाते हैं।
मुझे उस समय बेहद शर्म आती है जब घरों में लोग दिन में अपना सारा काम करने के पश्चात् दोपहर में पलंग पर लेटकर अपने कोमल-कोमल हाथों से कोई मेरी बांहें पकड़े कोई कमर पकड़े मुझे निहारती हैं और थोड़ी देर बाद निहारते-निहारते मुझे अपने ऊपर लिटाये और खुद सो जाती है मुझे घबराहट और बेचैनी होती है, मैं सोचता हूं- हे भगवान कोई कब जल्दी आये और मुझे इनसे छुड़ा के ले जायें।
मेरा हृदय जब गद्-गद् हो जाता है, देश की सीमा पर तैनात भारत माँ के सपूत मुझे देखते हैं दौड़ पड़ते हैं उनके हाथों के स्पर्श से मैं धन्य हो जाता हूं और सोचता हूं कि मेरा जीवन धन्य हो गया।
मजे की बात तो यह है मि मेरे मालिक मेरे ’’सम्राट’’ के हाथ में जो (कलम) तलवार है वो लकड़ी की है जिससे बिना खून-खराबे के सिर्फ चारों तरफ घुमाने से ही लोगों के रूके हु काम होने लगते हैं तभी तो मैं नेता-अभिनेता की शान और गरीबों का मसीहा माना जाता हूँ।
मुझे उन दरिंदों पर बेहद ख़ौफ आता है जो मेरे नाम पर अपनी (कलम) तलवार को बेच देते हैं अपना वज़ूद गिरवी रख देते हैं मेरी भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं अपना उल्लू सीधा करते हैं ऐसे मालिक से तो मन करता है इनकी गुलामी से बंद हो जाना या बलिदान हो जाना बेहतर होगा।
लोग मेरी उम्र बढ़ाने की बहुत कोशिश करते हैं कोई सोचता है 7 दिन तो कोई सोचता 15 दिन हो जाये, लेकिन मुझे मालूम है मेरी उम्र सिर्फ एक ही दिन की है। कल फिर मेरा ही मालिक किसी दूसरे को जन्म देगा उसकी भी यही आत्मकथा होगी। मैं लम्बी उम्र के बजाय एक दिन की शान की जिन्दगी जीना ज्यादा बेहतर मानता हूंं।
मेरे मालिक मेरी रोज की रंगीन/ब्लेक एण्ड व्हाईट तस्वीरें इतिहास के झरोखों में दिखाने के लिये संजो कर रखते हैं। मैंने अपनी आत्मकथा सुना डाली लेकिन अपना नाम नहीं बताया मैं आपकी बाहों में समाया हूं आप मुझे सम्हालिये फिर मैं आपको अपना नाम बताता हूँ। मुझे याद है सबसे पहले मैं बनारस में आज के नाम से निकला फिर अब तो क्या पूछना कोई मुझे मुलतापी समाचार, भास्कर, नवभारत, कोई लोकमत कोई नई दुनिया से पुकारता है।अंग्रेजी में मेरा नाम है- क्रानिकल टाईम्स आफ इण्डिया उर्दू में हितवाद और पंजाब में पंजाब केसरी उजाला सहारा। हर प्रान्त में वहां का लाड़ला माना जाता हूँ। अब यह आपकी मर्जी कि आप मुझे क्या नाम क्या ईनाम देते हैं।
आपको मालूम है मेरी उम्र सिर्फ एक दिन है मुझे आपके हाथों में देखते हुये मुझे बड़ा फक्र महसूस हो रहा है, लेकिन मुझे जब ज्यादा तृप्ती मिलेगी, मेरी आस्था और बढ़ेगी जब आप मुस्कुराकर मुझे सुरक्षित किसी और के हाथों में दे दें।
युद्ध बदला योद्धा बदले बदल गए हथियार ये कैसा है प्रहार भैया ये कैसा है प्रहार ना कोई तीर ना कोई गोला ना चलती तलवार ये कैसा है प्रहार भैया ये कैसा है प्रहार थरथर धरती कांप रही है दुखिया है संसार यह कैसा है प्रहार भैया ये कैसा है प्रहार ना शत्रु दिखता ना शस्त्र ना दिखता है वार ये कैसा है प्रहार भैया ये कैसा है प्रहार ना कोई वैद्य ना कोई दवा और ना ही कोई उपचार यह कैसा है प्रहार भैया यह कैसा है प्रहार कहां पर जन्मा कहां से आया मचा दिया हाहाकार यह कैसा प्रहार भैया यह कैसा प्रहार घर में रहें सुरक्षित रहें न करें दहलीज पार यह कहती सरकार भैया यह कहती सरकार मां आओ या पिता को भेजो जल्दी करो संहार इसका जल्दी करो संहार
मध्यप्रदेश: आजकल सोशल मिडीया पर पुलिस की सख़्ती दिखाते विडीयो किसी के लिए मनोरंजन का साधन हैं तो किसी के लिए क्रूरता की हद। …सबका अपना-अपना गणित व व्याकरण है , सबकी अलग अलग सोच। परंतु कितने लोग सोच रहे हैं कि हम किन हालातों से गुज़र रहे हैं? हमारा कलेजा मुँह को आ जाता है जब हमारे बच्चे पुछते हैं कि पापा घर कब आओगे? आपको बीमारी नहीं होगी ना?आँखें भर आती हैं जब पत्नी रुँधे गले से फ़ोन पर बोलती है-अपना ध्यान रखना और यह कहते ही बिना जवाब सुने फ़ोन काट देती है क्योंकि वह नहीं चाहती कि हमें पता लगे कि वो रो रही है।
मैं मध्य प्रदेश पुलिस की तरफ से आपको बता देना चाहता हूँ कि पूरे भारत की पुलिस, सुरक्षा को ठेंगा दिखाने वालों पर सख़्ती सिर्फ़ इसलिए कर रही है कि उनका अपना परिवार सुरक्षित रह सके। ये समाज सजीव रह सके। संसार के मानचित्र पर हमारे महान देश का अस्तित्व बना रहे।
याद कीजिए हड़प्पा एवं मेसोपोटामिया सभ्यता को। दोनों सभ्यताएं अपने समय में चरम पर एवं पूर्णत: उन्नत अवस्था में थी। परंतु आज ?? …… हड़प्पा/मोहनजोदड़ो या सिन्धु घाटी सभ्यता को अकाल या कोरोना जैसी ही कोई महामारी खा गई थी। जिसके अवशेष मात्र कहीं-कहीं खुदाई में मिलते हैं तो मेसोपोटामिया को सिकंदर की हठधर्मिता का निवाला बनना पड़ा । और नतीजन; उस सभ्यता का वजूद ही न रहा।
अब आप सोचिए कि आपको अपनी सभ्यता एवं संस्कृति को मिट्टी में मिलाकर अवशेष मात्र बनाना है या कोरोना महामारी से बचाकर अपनी भावी पिढ़ियों को फलते-फूलते देखना है? आपको हठधर्मी बनकर रसना के स्वादपूर्ति व व्यापार विस्तार हेतु गलियों-सड़कों पर घुमकर अपना, परिवार का व सम्पूर्ण राष्ट्र का नामों-निशाँ कोरोना के माध्यम से नेस्तनाबूद करना है या अपने महान राष्ट्र को विश्वगुरु बनाना है? फैंसला आपको करना है। याद रखिए- हम उस महान हिंद के निवासी हैं जो इतिहास बनाते हैं न कि इतिहास बनते हैं। संक्रमण की उस परिधि में जहाँ ज़रा-सी चुक निश्चिततः मौत है।
हमारे चिकित्सा जगत, बैल्ट के साथी व अन्य कई विभागों के साथी दिन रात एक करके आप लोगों की सुरक्षा में लगे हैं। हमारे जीवन की कोई गारंटी नहीं है पर हम आपको गारंटी दिलाते हैं कि आप सब अपने घरों में रहिए और माननीय प्रधानमंत्री भारत सरकार व प्रशासन द्वारा दी गई हिदायतों का पालन कीजिए। आपके जीवन की सुरक्षा हम करेंगे। एक बात और कहना चाहूँगा देशवासियों कि-
ज़िंदगी है तो इम्तिहान भी होंगे साहब, वरना मुर्दों के तो सिर्फ़ श्राद्ध होते है
आंसू बहाती गई इतिहास रचिता गया इस लंबे सफ़र में 2651 दिन घुट घुट के आंसू बहाती गई इतिहास रचता गया मैंने ठान रखा था
मैं टूटूगींं तो इन चारों हत्यारों को लेकर टूटूगींं निर्भया की सिसकती आहें मुझे सोने नहीं देती थी
मेरी तो अंतिम इच्छा ही यह थी मैं तो इन चारों हत्यारों को लेकर ही टूटूगींं आगे पढि़ए
आंसू बहाती गई इतिहास रचा गया
मैं अपने पुराने दिनों को याद करती हैं, तो आश्चर्य होता है कि जब में बिना पिये दो-चार कदम भी नहीं चल पाती थी. अब तो मैं समय के साथ-साथ इतनी बदल गई है, जैसे रेगिस्तान में ऊँट एक-एक माह का पानी एक साथ पीकर लगातार चलता जाता है।
वैसे में अपनी व्यथा क्या सनाऊँ मैं तो वो मनचली हूँ, जिसने मुझे थामा बस उसकी ही उंगलियों थामें उसके भविष्य को संवारने में लग जाती हूँ। मेरे लिये न तो कोई उम्र की सीमा है. ना जाति का बंधना मुझे न तो कोई अमीर से लगाव है और न गरीब से परहेज, मैं तो स्वच्छन्द विचारों वालों के हाथों की कठपुतली हूँ, जो उसकी खुशी, गम, जज़बात, भावना और विचारों के अनुसार नाचती, आँसू बहाती जाती हूँ और इतिहास रचती जाती हूँ।
अक्सर मुझे लोग अपने दिल से लगाकर रखते हैं, हर कोई अपने दिल-दिमाग को संतुलित कर मुझे अपने हाथों में थामे अपनी कहानी, व्यथा सुनाता जाता है और मैं उसकी उंगलियाँ थामे आँसू बहाती चलती जाती हूँ। मैं तो वह दिवानी हूँ, जिसकी पनाह में जाती हूँ, उसका ही अस्तित्व बनकर रह जाती हूँ। ऋषि-मुनियों के हाथों लगी तो वेद और शास्त्र बन गये। न्याय के पुजारी ने छुआ तो न्याय का इतिहास रचती चली गई। कमजोर गरीब असहाय की तो अर्जी बन न्याय का दरवाजा खट-खटाती चली आ रही हूँ। किसी कलाकार की इच्छा अनुसार उसकी कलाकृति, किसी शायर की मनचाही शायरी और किसी कवि की भावनात्मक कविता, कल्पना और साहित्यकार की रचना रचकर लोगों का दिल जीत रही हूँ। मजे की बात तो यह है कि मैं तो राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री, नेता, राजनेता, आई.ए.एस., आई.पी.एस. की वो ताकत हूँ, जिस रास्ते चली गई, गानों पत्थर की लकीर, तब तो लोग मुझे पूजते हैं, सम्मान देते हैं। नन्हें-मुन्ने बच्चे बड़े ही लगाव से अपनी नाजुक, नन्हीं-नन्हीं कोमल उंगलियों में थामे मुझे चलाने का प्रयास करते हैं और मैं उनका भविष्य संवारने में पूरा-पूरा सहयोग देती हूँ। गाँवों में कुछ महिला, बड़े-बूढ़े जब कभी पहली-पहली बार शर्माते हुए अपने हाथों में मुझे लेते हैं, तो उनके हाथ कांपने लगते हैं. तब मुझे बड़ा ही अजीब अहसास होता है। मुझे थामने वालों को, सभी को अपना सम्राट मानती हूँ और उसके इशारों पे नाचती हूँ, पर जब मैं लोगों को मेरे इशारे पर नाचता देखती हूँ तो मुझे बेहद खुशी के साथ-साथ पूर्ण तृप्ति मिलती है और मुझे अपनी अहमियत का पता चलता है। मेरी तो सदा उनके प्रति आस्था (श्रद्धा) रहती है, जो मुझे सही राह पर चलाते हैं।
मुझे अपने आप पर फक्र है, मैं टूटती भी हूँ तो पहले किसी हत्यारे के नाम मौत का पैगाम (Hanging till Death ) “हैगिंग टिल डैथ” लिख मेरे न्यायप्रिय सम्राट के हाथों मेरा रार-कलग कर दिया जाता है। वॉह रे मेरी किस्मत, मैं कोई और नहीं आपके हाथों की ही एक कलम हूँ।
कभी बर्तन धोते और खाना बनाते थे ये राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता
सिर्फ तीसरी कक्षा तक पढ़े हैं पद्मश्री कवि हलधर नाग, पांच छात्रों ने उनपर की है पीएचडी
ओड़िशा के हलधर नागजी जो कोसली भाषा के प्रसिद्ध कवि है।उन्होंने जो भी कविताऐं, 20 महाकाव्य अभी तक लिखे है,अब संभलपुर विश्व विद्यालय में उनके लेखन के एक संकलन ‘हलधर ग्रन्थावली-2’ को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा।
ऐसे हीरे को चैनल वालों ने नही,मोदी सरकार ने पद्मश्री के लिए खोज के
नई दिल्ली, हलधर नाग ने इस बात को साबित किया है की किताबी ज्ञान या डिग्री से ऊपर है ज्ञानी और विद्वान होना। ज्ञानी और बुद्धिमान व्यक्ति की विद्वता हर स्थिति में बाहर आती है। कवी हलधर नाग को पद्म श्री पुरस्कार मिला है तब से वह लगातार चर्चा में हैं।
मजबूत कद काठी वाले गहरे श्याम वर्ण के कवि हलधर नाग पद्म पुरस्कार लेते समय भी हलधर नाग नंगे पैर थे। कवि हलधर नाग मात्र तीसरी कक्षा तक पढ़े हैं। उनपर पांच शोधार्थियों ने अपना पीएचडी पूरा किया है।
यहां हम जिनके बारे में बताने जा रहे हैं, उन्होंने एक अलग प्रवत्ति को जन्म दिया है। शिक्षा वह नहींं, जो सिर्फ किताब से ली गई हो। शिक्षा उस शैली का नाम है, जो इंसान अपनी खूबी, प्रतिभा को निखार कर सिद्ध करता है।
हलधर नाग, जो मुश्किल से तीसरी कक्षा तक भी नहीं पढ़े है, को वर्ष 2016 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वहीं, उनपर पांच शोधार्थियों ने अपना PHD पूरा किया है। आइए जानते हैं कि आखिर ऐसा क्या ख़ास है, उ़ड़ीसा के रहने वाले हलधर नाग में।
ओडिशा के रहने वाले 66 वर्षीय हलधर नाग कोसली भाषा के कवि हैं। उन्होंने अब तक हज़ारों कविताएं और 20 महाकाव्य लिखे हैं। अपने लिखी हुई तमाम रचना उन्हें ज़ुबानी याद हैं। अब संभलपुर विश्वविद्यालय में उनके लेखन के एक संकलन ‘हलधर ग्रन्थावली-2’ को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा।
सादा लिबाज, सफेद धोती और बनियान पहने, नाग हमेशा नंगे पैर ही रहते हैं। उनकी सोशल मीडिया पर उनकी सादगी वाली फोटो खूब वायरल हो रही है। कवि हलधर नाग दिन भर में कम से कम ३ आयोजन करते हैं जिसमें वह लोगों को अपना लिखा पढ़ कर सुनाते हैं। कवी हलधर नाग कहते हैं उन्हें देख कर ख़ुशी मिलती है कि उनकी रचना को आज के युवा भी बड़ी चाव से सुनते हैं।
वर्ष 1950 में जन्में कवि हलधर नाग के पिता कि जब वह तीसरी कक्षा में थे तभी मृत्यु हो गई थी। तब वह महज 10 साल के थे। उन्हें पिता की मृत्यु के कारण कम उम्र में ही नौकरी छोड़नी पड़ी थी। परिवार की जिम्मेदारी तीसरी कक्षा में ही उनके कंधे पर आ गई थी। उन्होंने तब ढाबों पर बर्तन धोने तक के काम किये।
उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन तब आया जब वह एक स्थानीय उच्च विद्यालय बावर्ची की करने लगे। १६ साल तक बावर्ची की नौकरी करने के दौरान उनकी मुलाकात एक बैंकर से हुई। उन्होंने उस से 1000 रुपए का क़र्ज़ लिया और एक छोटी सी दूकान खोली, जिसमें बच्चों के जरूरत की चीजें उपलब्ध थी।
इसी दौरान नाग ने अपनी पहली रचना ‘धोडो बरगच’ ( द ओल्ड बनयान ट्री) लिखी। फिर उसके बाद सिलसिला चल निकला जो आज भी जारी है। अपनी पहली लिखी कविता को उन्होंने स्थानीय पत्रिका में प्रकाशन के लिए भेजा।
66 वर्षीय हलधर नाग कोसली भाषा के प्रसिद्ध कवि हैं। ख़ास बात यह है कि उन्होंने जो भी कविताएं और 20 महाकाव्य अभी तक लिखे हैं, वे उन्हें ज़ुबानी याद हैं। अब संभलपुर विश्वविद्यालय में उनके लेखन के एक संकलन ‘हलधर ग्रन्थावली-2’ को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा। सादा लिबाज, सफेद धोती और बनियान पहने, नाग नंगे पैर ही रहते हैं।
हलधर नाग जो कुछ भी लिखते हैं, उसे याद करते हैं। आपको बस कविता का नाम या विषय बताने की ज़रूरत है। उन्हें अपने द्वारा लिखे एक-एक शब्द याद हैं। वह एक दिन में तीन से चार कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जिनमें वह अपनी लिखी रचनाएं लोगों को सुनाते है। नाग कहते हैंः
“यह देखने में अच्छा लगता है कि युवा वर्ग कोसली भाषा में लिखी गई कविताओं में खासा दिलचस्पी रखता है।”
लधर नाग का जन्म 1950 में बारगढ़ जिले के एक गांव में गरीब परिवार में हुआ। नाग ने मात्र तीसरी कक्षा तक ही अपनी शिक्षा ली, लेकिन पिता की मृत्यु के बाद उन्हें बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। तब वह महज 10 साल के थे।
पिता का साया सिर से उठ जाने के बाद उनकी माली हालत और बिगड़ती चली गई। उन्होंने अपने परिवार की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर लेते हुए छोटी उम्र में ही एक स्थानीय मिठाई की दुकान पर बर्तन धोने का काम किया।
करीब दो साल बाद, नाग ने एक स्थानीय उच्च विद्यालय में 16 साल तक एक बावर्ची के रूप में काम किया। नाग बताते हैंः
“वक़्त के साथ इस क्षेत्र में ज़्यादा से ज़्यादा स्कूल बनाए गए। तब मेरी मुलाकात एक बैंकर से हुई। मैंने उनसे 1000 रुपए का क़र्ज़ लेते हुए एक छोटी सी दूकान खोली, जिसमें बच्चों के स्कूल से जुड़ी, खाने की चीज़ें उपलब्ध थी।”
यही वह दौर था, जब नाग ने 1990 में अपनी पहली कविता ‘धोडो बरगच’ ( द ओल्ड बनयान ट्री) लिखी। इस कविता को उन्होंने स्थानीय पत्रिका में प्रकाशन के लिए भेजा। उन्होंने पत्रिका को चार कविताएं भेजी थी, और सभी रचनाएं प्रकाशित हुई।
“यह मेरे लिए बहुत सम्मान की बात थी और इस वाकये ने ही मुझे और अधिक लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। मैंने अपने आस-पास के गांवों में जाकर अपनी कविताएं सुनाना शुरू किया और मुझे लोगों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली।”
उडीसा में लोक कवि रत्न के नाम से मशहूर नाग की कविताओं के विषय ज़्यादातर प्रकृति, समाज, पौराणिक कथाओं और धर्म पर आधारित होते हैं। वह अपने लेखन के माध्यम से सामाजिक सुधार को बढ़ावा देने की ओर तत्पर रहते हैं।
नाग कहते हैं कि मेरे विचार में कविता का वास्तविक जीवन से जुड़ाव और उसमें एक समाजिक सन्देश का होना आवश्यक है।