हमने ये कैसी तरक़्क़ी की है ? दिख रहा है पर मदद नही कर पा रहे है
बिना स्वार्थ और लाभ के, जीवन दाँव पर लगा, जनता के आँसुओं को पोंछता और दर्द को बाँटता पत्रकार
गरीब ने बोला, फ़िल्म में बोला जाता तो करोड़ों कमा लेती
Multapi Samachar
नई दिल्ली/भोपाल/इंदौर/ (गजेन्द्रसिंह सोलंकी )
कोरोना के चलते दिल्ली से लोगों के पलायन का कवरेज करते एबीपी न्यूज का पत्रकार, खुद अपने आँसू नही रोक पाया, इससे समझा जा सकता है कि, हज़ारों परिवार के बच्चे, महिलाएँ और पुरुष किस स्थिति से गुज़र रहे होंगे ….जिसकी कल्पना करने से ही रूह काँप जाती है ….,भाषणों से जनता का पेट भरने वाले नेता गायब, पत्रकार और अफसर जान दाँव पर लगा, जनता को बचाने के प्रयास में लगे है…
अफसरों को तनख्वाह और साधन, सुविधाएँ मिलती है, पत्रकार जेब से लगा कर करता है जनसेवा । कई बार तो पुलिस के डंडे और नकचढ़े अफसरों की बदसलूकी भी झेलता है, फिर भी पीड़ित जनता की आवाज उठा कर, उन कानो तक पहुँचता है, जिनकी स्वयं ज़िम्मेदारी है, जनता की बात सुनने की। कोरोना (कोविड-19) के चलते अफसरों को तो मास्क, ग्लोबज, सेनेटाईज़र सहित कई सरकारी सुविधाएँ मिल रही है, या शासकीय व्यय से मिल जाती है, किन्तु पत्रकार अपने स्वयं के वाहनो से, स्वयं के व्यय से, जनता को जागरूक करने के लिए और उनके बचाव के लिए, सैनिकों की तरह अपनी जान को जोखिम में डाल कर डटा हुए है । दिल्ली, यु.पी. में उमड़ी भीड़ के बीच, पेदल अपने गाँवों की तरफ जाते ग्रामीणों के बीच नेता नही, पत्रकार पहुँच रहे है । अगर यह सवाल उठाया जाए क्या सरकार ने पत्रकारों को कोई सुविधा और सुरक्षा उपलब्ध करवाई है ? तो जवाब मिलेगा नही ! यहाँ हालात ये है कि जिनके ऊपर सुरक्षा की ज़िम्मेदारी है, वो खुद सुरक्षा कर्मी लेकर घूमते है । जिन ठेकेदारों, उधोगपतियों और आलीशान बिल्डिंगों का निर्माण करने वालों ने गाँव से बुला कर गरीब मजदूरों को उनके हाल पर भूखा-प्यासा छोड़ दिया उनके खिलाफ सरकार ने कार्यवाही क्यों नही की ? क्या शहरों के विकास और निर्माण के लिए गाँवों से शहरो में आए, गरीब मजदूर के वोट, उन शहरों में नही होने के कारण, सरकारों ने उनकी सुध नही ली ? क्या गरीब मजदूर इस बात को समझते है, इसीलिए उन्होंने शहरों से सामूहिक पलायन करके, अपनी जान कोरोना के हवाले कर दी ? पत्रकार अपने दम पर इन मज़दूरों की आवाज बन रहे है, वर्ना शायद प्रशासन डंडे के जौर पर इन्हें कब का तितर-बितर कर देता…! जिन शासकीय कार्यालयों में लॉक डाउन के दौरान काम बंद है, उन शासकीय कार्यालयों के, फेक्ट्री के, ठेकेदारों के वाहनों से गरीबों को उनके गाँवों तक पहुचाने की और उन तक भोजन पहुचाने की सत् बुद्धि नेताओं और अगसरों को क्यों नही आई ? यह कई बार साबित हुआ है कि, पत्रकार वास्तव में सच्चा देश भक्त और समाजसेवी है, जो अपने दम पर, बिना शासकीय सुविधाओं को प्राप्त किए, जनसेवा करता है….सैनिकों की तरह देश की सीमा के अंदर अपनी जान की बाजी लगाता है, कोरोना जैसी महामारी में भी यही कर रहा है, नेता और अफसर इंटरव्यु देते हुए पत्रकारों को अपना ख़्याल रखने का तो कहते है, पर बचाव के साधन और सुविधाएँ नही देते है….
खास बात –
- जनता के दुःख में आँसू बहता है पत्रकार, तो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की बात भी उठता है पत्रकार –
सायकिल पर सोते हुए अपने छोटे से बच्चे को बैठा कर (बच्चा गिर न जाए इसलिए सायकिल के हेंडल से बाँध कर) दिल्ली से 500 किलो मीटर दूर, अपने गाँव की तरफ निकले मजदूर की स्टोरी दिखाते-दिखाते ABP न्यूज के रिपोर्ट की आँखे भर आई, इससे समझा जा सकता है पत्रकार भावनात्मक रूप से भी जनता के दर्द को झेलते और सहते है । पत्रकारों के लिए उनका पेशा सिर्फ वही तक सीमित नही है कि दिखाया, लिखा और भूल जाओ या आगे बढ़ जाओ, पत्रकार कई बार जनता के लिए, उसके हक की लड़ाई, हक दिलाने तक कलम और माईक थामे लड़ता है । बदले में पत्रकार को भ्रष्ट अफसरों, नेताओं, अपराधिधियों के गठजौड़ से कई बार धमकियाँ मिलती है, किन्तु झूठ के आगे पीड़ित जनता दुआ उसकी रक्षा करती है । यही कारण है कि सबसे ताकतवर समझी जाने वाली सर्वोच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों को भी अपनी पीढ़ा और माँग को लेकर मीडिया की शरण में आना पड़ा था, उनमें से एक भारत की सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बन कर रिटायर्ड हुए और अब राज्यसभा के सदस्य है ।
खास बात –
सैनिकों की तरह देश की सीमा के अंदर अपनी जान की बाजी लगाता है, कोरोना जैसी महामारी में भी यही कर रहा है, नेता और अफसर इंटरव्यु देते हुए पत्रकारों को अपना ख़्याल रखने का तो कहते है, पर बचाव के साधन और सुविधाएँ नही देते है….
खास बात –
“ हमने ये कैसी तरक़्क़ी की है ? दिख रहा है पर मदद नही कर पा रहे है “
ऐसी में अगर यह कल्पना की जाए की आप और हम आर्थिक रूप से सक्षम नही है और पलायन करती भीड़ में अपने बच्चों के साथ फँसे है, न घर तक पहुचने का साधन है, न बच्चों को खिलाने के लिए खाना है, न पिलाने के लिए पानी। इस स्थिति में यह भी सोचना मत भूलना की हम और हमारी सरकारें ये सब देख रही है, पर ये कैसी तरक़्क़ी की है कि उन तक खाना, पानी तक नही पहुँचा पा रहे है, जबकि अभी तो वो भारत की राजधानी दिल्ली जैसे शहर की सीमा में ही है या उसके आस-पास है
गरीब ने बोला, फ़िल्म में बोला जाता तो करोड़ों कमा लेती –
जब पलायन कर रहे एक मज़दूर से यह पूछा गया की इतनी भीड़ में हो, कोरोना हो गया तो, उस ग़रीब का जवाब सुन कर घर बैठे आँसू आ गए उसने बड़ी मासूमियत से पत्रकार की कहा साहब यहाँ भूख से मर जाएँगे, गाँव पहुँच कर जीवन की उम्मीद तो है…, अगर यही बात किसी फ़िल्म में हीरों या हीरोईन कहती तो करोड़ों कमा लेती और ये बात उसे जीवन भर पहचान देती, पर यहाँ जीवन का सवाल था !
मुलतापी समाचार